गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ राज मा संत परम्परा के एक परमुख संत आय। सादा जीवन उच्च विचार के धनवान संत गुरु घासीदास छत्तीसगढ़ राज ला नवा दिसा दिस अउ दसा ला सुधारे बर सरलग बुता करिन अउ अपन सरबस लुटादिन।
जीवनी:- बछर 1672 मा हरियाणा राज के नारनौल गाँव मा बीरभान अउ जोगीदास नाव के दु झिन भाई जिनगी चलावत रिहिस। दुनो भाई सतनामी साध मत के साधक रिहिस अउ अपन मत के परचार परसार करत रिहिस।दुनो भाई अब्बड़ स्वाभिमानी रिहिस। सतनामी साध मत के विचारधारा के अनुसार कोनो भी मनखे ला कोनो दूसर मनखे करा झुकना मना रिहिस, लेकिन मनखे के पूरा सम्मान होय ये बात के धियान ये मत मा होवत रिहिस। सन 1672 हा मुगल काल के सासन हमर देस मा चलत रहिस अउ मुगल सासक औरंगजेब के हाथ मा सासन के डोरी हा रिहिस। एक घांव के बात आय की सतनाम साध मत विचारधारा के किसान मन औरंगजेब के सेना अउ ओकर चेला चांगुरिया मन ला झुक के सलाम नइ करिस ता औरंगजेब के सैनिक मन जम्मो किसान मन ला लउठी मा मार दिस। किसान अउ सैनिक मन के बीच मा भयंकर झगरा सुरु होगे। थोक थोक मा बात मुगल सासक औरंगजेब तक पहुँचगे। सतनामी अउ औरंगजेब के झगरा सुरु होगे। सतनामी समाज के अघवा दोनो भाई वीरभान अउ जोगीदास रिहिस। अड़बड़ दिन ले झगरा चलिस, जेमा सतनामी समाज के सैनिक मन औरंगजेब के सेना के धुर्रा छड़ा दिस। जेकर बाद औरंगजेब के अतियाचारी हा दिनो दिन अउ बाढ़हत गिस अउ सतनामी समाज के लोगन मन ला मारे पीटे के सुरु होईस। अतियाचारी ले बाचे बर सतनामी समाज के लोगन मन देस मा येती ओती बगरत गिन। जेकर बाद गुरु घासीदास के पुरखा मन घलो छत्तीसगढ़ राज मा आके बस गिस अउ इहचे जीवन यापन करिस।
गुरुघासीदास के अवतरण:– गुरु घासीदास के जनम अट्ठारह दिसम्बर 1756 मा वर्तमान बलौदाबाजार जिला के बिलाईगढ़ तहसील के गिरौदपूरी गांव के एक साधारण किसान अउ गरीब परिवार मा होईस। गुरु घासीदास के ददा के नाव महंगू दास अउ दाई के नाव अमरौतिन बाई रिहिस। गरीबी मा दिन गुजारे के सेती गरीब अउ सोसित मन के पीरा ला घासीदास भली भांति समझय अउ उकर कल्याण बर सदा सरलग बुता करत करय। घासीदास बबा हा सत के खोज बर छाता पहाड़ ला अपन समाधि इस्थल बनाइस अउ ज्ञान बर सरलग तपस्या करिस।
कुरीति के पुरजोर विरोध:- गुरु घासीदास जी हा समाज के फैले जुन्ना परम्परा जेन हा समाज बर खतरा रिहिस अइसन परम्परा अउ रीतिरिवाज के पुरजोर विरोध करिस। समाज के चार वर्ण के सिद्धांत ला गलत ठहराइस। चार वर्ण के जुन्ना परम्परा मा समाज के लोगन मन स्वाभिमान के जीवन यापन नइ कर सकत रिहिन। वो समय के ब्राम्हण वर्चस्वता ला सिरवाय बर नवा उदिम करिस जेकर ले समाज मा सब जाति के मनखे मन ला समान अधिकार मिलिस। जुन्ना सन्त होय के कारन गुरु घासीदास जुन्ना रीतिरिवाज मन के समाज मा होवइया प्रभाव ला भली भांति समझय अउ छुटकारा देवाय बर सरलग बुता करिस। मनखे मन ला स्वाभिमान ले जीवन जिये के प्रेरणा दिन।
लोगन मन बर सिक्छा:- गुरु घासीदास एक सिद्ध पुरुष संत रिहिस। संत मन अपन करम के द्वारा लोगन मन ला सिक्छा देय के काम करथे। गुरु बाबा के एक सिद्धात् मनखे मनखे एक बरोबर हा समाज के लोगन मन बर एक परमुख सिक्छा आय। संत होय के कारण गुरु घासीदास ज्ञान भक्ति अउ बैराग्य हा कूट कूट के भरे रिहिस। मुगल मन के सासन काल मा बलि प्रथा हा पनपत रिहिस ओकर विरोध गुरुजी के द्वारा करे गिस। मूर्ति पूजा के बदला मा ज्ञान भक्ति वैराग्य के द्वारा ईश्वर ला पाय बर लोगन मा जारूकता लाइस। पशुधन के ऊपर होवत अतियाचारी ला गुरु घासीदास हा रोकिस। सतनाम पंथ मा गाय के उपयोग खेती के कारज मा मनाही हे। सुराजी के लड़ई मा छत्तीसगढ़ राज के पहिली शहीद वीर नारायण सिंह घलो गुरु बाबा के सिखाय रददा मा रेगिन।
सात सिद्धान्त:– गुरु घासीदास के सात सिद्धान्त ला सतनाम पंथ मा सात वचन के रूप मा माने जाथे जेमा सतनाम धरम मा विस्वास, जीव हत्या नइ करना, मांसाहार मा प्रतिबंध, जुआ चोरी ले दुरिहा रहना, नसा ले दुरिहा रहना, जाति पाती के भेद नइ करना, व्यभिचार ले दुरिहा रहना हा शामिल हे। एकर अलावा सत्य अउ अहिंसा, धैर्य, लगन, करुना, करम, सरलता अउ नेक व्यवहार के चरचा सात सिद्धान्त मा करे गे हवय।
गुरु घासीदास हा समाज के लोगन मा नवा सोच अउ विचार पैदा करिस अउ इही बुता बर अपन सरबस लुटा दिस। तेखरे सेती आज संत बाबा गुरु घासीदास के जीवन हा आज के मानव समाज मा एक आदर्श हे।
दीपक कुमार साहू
मोहंदी मगरलोड